सोमवार, 31 दिसंबर 2012

बता दिजीये मुझे.....

चाहतें मेरी कम है, या चाहना तुम्हे है जुर्म,
इक बार आकर बता दिजीये मुझे।

कब तक जियें, तन्हाई के इन अन्धेरो मे,
इक रौशनी तो दिखा दिजीये मुझे।

बांधे रखूं कब तक, सांसों की लङी को मै,
रुख़सत-ए-वक्त बता दिजीये मुझे।

अपने दिल मे बसाकर, अपना बना लो,
या नज़रो से गिरा दिजीये मुझे।

अपनी कहते हो, ना सुनते हो मेरी कुछ,
बस हकिकत बता दिजीये मुझे।

भटक ना जायें ,जिन्दगी की राहो मे हम,
रास्ता बस वो दिखा दिजीये मुझे।

भर दो खुशियां तुम, जिन्दगी मे मेरी भी,
या खाक मे मिला दिजीये मुझे।                { अधीर }

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

ख्वाब दिल का....

नामुमकिन है मिलना उसका,अब इस ज़िदंगी मे ,
ख्वाब दिल का अब, बिखर ही जाये तो अच्छा है।

कट जायेगा ये सफ़र भी, अंधेरो मे या उजालों मे,
उदासीयों का  दौर अब, गुजर जाये तो अच्छा है।

कब तक जियेगा कोई , किसी की यादों के सहारे ,
दर्द ऑसु बनके ,ऑखों से बह जाये तो अच्छा है।

जानता हुं आसान नही, खुद का खुद से जुदा होना ,
जिदंगी उसकी सही, अब संवर जाये तो अच्छा है।

कब सोचा था कि,जिदंगी मे ऐसा वक़्त भी आयेगा,
आखिरी बार सही,उसका दीदार हो जाये अच्छा है।   

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

क्या लिखूं ....!!

आंखे नम है मेरी, कोई शब्द नही है
अब कुछ भी लिखने को मन नही है

क्या लिखूं , दर्द उस मासूम का,
वहशिपना उन् भूखे भेडियो का,

अंधी बहरी नाकाम सरकारो की बातें
बयान करूं दिल्ली की वो जुल्मी रातें

पुलिसीया बर्बरता को बयान करुं..
या माँ-बहनों की चीत्कार लिखूं मै

लिख दुँ क्या अब मानवता का पतन
बयां करूं मासुम के हमदर्दों का जतन

वहशी सरकारों की जीत लिखूं
या हक में लङतो की हार लिखूं

अधिकार नही अब हक में भी लड़ने का ,
दिल करता है लोकतंत्र को बीमार लिखूं

क्या लिखूं जेहन मे सूझता ही नही अब,
मसला है कि देश का सुलझता नही अब

लिखू रामलीला मैदान या जंतर मंतर
सरकारों में अब दीखता न कोई अंतर

उन कालेज के छात्रो का उपकार लिखूं
या देश की मानसिकता ही बीमार लिखूं

सोचता हुं तो....

दिल में दर्द की लहर सी उठती है
लिखता हुं तो ये कलम रूकती है

सच तो ये है .....
लिख ना पांउगा आज कुछ "अधीर'
बीमार है शायद देश का पूरा शरीर।

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

दुर कहीं सितारो के बीच देखा है एक चाँद मैनै !

     चाहता हुँ मै भी उसे पाना !

     और बढा देता हुँ दो कदम उसे पाने की चाह मे !

     सहसा....

     ठिठक जाता हुँ मै !

    याद आने लगते है,

    मेरे फर्ज , मेरी मर्यादा !

    होने लगता हुँ हकिकत से ऱुबरु,

    दिल और दिमाग की इसी जंग मे !

    आखिरकार हार जाता है दिल......,
    और जीत जाता है दिमाग !

    लौटा देता हुँ कदमो को मायुसी के साथ ,

    उससे दुर , बहुत दुर

    यही सोचकर !

    मिलेंगें नही शायद इस जनम ,
    मिलेंगें शायद अगले जनम !

    शायद अगले जनम ! ....{ अधीर }...

रविवार, 23 दिसंबर 2012

अबला ..

कब तक तू ,अबला बनके रहेगी,
बता ये व्यथा अपनी,अब तु किससे कहेगी।

होते ही रहेंगे, अत्याचार तुम पर,
नर पिशाचों के ज़ुल्मों से, तु जब तक डरेगी।

मां काली की बेटी है, तु याद कर,
सदियों सहा है तुमने, और कब तक सहेगी,

नोच के खा जायेगें, ये भुखे भेङिये,
रणचंडी बनके, जब तक रण में न उतरेगी।

काट डाल हैवानो को, जो जुल्म करे,
कर निश्चय,अब
ग़म नही, तु संहार करेगी।

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

बेऱूखी ......

ये चंद पंक्तियां सालो पहले लिखी थी मैने...

जीवन गमो का पहाङ बनता चला गया,
यादो का कफन भी सिमटता चला गया।

फुलो को पाने की चाह मे,
कांटो मे ऊलझता चला गया।      जीवन....

देखी जो बेऱूखी उनकी इस कदर,
गमो से प्यार करता चला गया।   जीवन..

छुपा रखा था जो ददॆ सीने मे,
नासुर बनता चला गया।          जीवन....

अपनो को होता देखकर बेगाना,
हर इक से रिश्ता तोङता चला गया।    जीवन....
[ अधीर ]

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

चाहत

 देते है जो उन्हे ,रिश्तो का वास्ता,
बच्चो सा बहला, जाते है मुझको वो।

बातें करना चाहे ,जो उन्से हम ,
अहसान सा क्यो, जताते है मुझको वो।

करते है जब, प्यार वफ़ा की बातें ,
दिवाना कहके, चले जाते है मुझको वो

चाहत नही उन्को जो मुझसे ,
क्यो जिन्दगी अपनी,बताते है मुझको वो।

बात करे जो उन्से, अपने दर्द की ,
अपना ही दर्द, सुना जाते है मुझको वो।

आते तो है दो चार, पलो के लिए ही ,
फिर उम्मीद, बंधा जाते है मुझको वो।

निकलने को, जो होता है दम मेरा ,
सांसे चार खैरात, दे जाते है मुझको वो। {अधीर }