शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,
इंसान जरुरत से, बंधा हुआ है ।

मेरे ख्वाबो मे ही, आते है बस वो,
पाना उनको, सपना बना हुआ है।

सुनो,पत्थर दिलो की बस्ती है ये,
तु क्यों मोम सा, बना हुआ है ।

खुदगर्ज है लोग, इस दुनिया मे,
कौन किसका, सहारा हुआ है ।

कहने को तो बस, अपने ही है वो,
दिलासा शब्दो का, बना हुआ है ।

लोहा होता तो, पिघलता शायद,
इंसान पत्थर का, बना हुआ है।

जीतने का ख्वाब, देखा नही कभी,
हारने का, बहाना एक बना हुआ है ।

नही होता अब, यकिन किसी पर ,
इंसान तो जैसे, हवा बना हुआ है।

लगाके गले, वो परायो को शायद,
अंजान अपनो से ही, बना हुआ है।

छोङो मेरे दर्दे-ए-दिल की फिक्र तुम,
ठोकर खाकर "अधीर" संभला हुआ है । { अधीर }

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,
खोना पङता है बहुत कुछ, मानता हुँ मै।

दोस्ती,प्यार,ममता,स्नेह नाम है कई,
इनके बीच का फ़र्क, पहचानता हुँ मै।

समझता नही,कोई समझना चाहता नही,
चाहो अगर, तो समझाना, चाहता हुँ मै।

हर रिश्तो की होती है, अपनी अहमियत,
हर रिश्तो मे खुदको ढालना,जानता हुँ मै।

कुछ पाकर ही रिश्ते, नही निभाये जाते है,
कुछ खोकर भी निभाना, जानता हुँ मै।

रिश्ते किसी गैर से हो, या अपनो से मेरे,
दुख - दर्द उनके बाँटना, जानता हुँ मै। { अधीर }