रविवार, 30 जून 2013

गम हर किसी को मिला है, इस जिन्दगी मे ,
दर्द के दायरे से बाहर, निकल कर तो देखो।
कब तक कैद रहोगे, तन्हाई की जंजीरों मे ,
आजाद फ़िजा मे तुम सांसे, लेकर तो देखो।
ग़म औरो की जिन्दगी मे भी, कम नही है,
इक नजर दुनिया पर भी, डाल कर तो देखो।
इन्सान की हर चाहत पुरी हो, जरुरी तो नही ,
अपनो के दर्द को तुम भी, समझकर तो देखो। [अधीर]

शनिवार, 11 मई 2013

माँ



अक्सर चाहता हूँ मैं माँ!
फिर से करूँ तुमसे बातें तमाम..
बेहिचक नादानी भरी, मन की जजबातें
जैसे करता था बचपन मे..अठखेली

क्यों रोक लेता है मेरा मन ,
क्यों रुठ जाते हैं बोल,
कपकंपा जातें हैं होंठ,
मन करता है बार-बार सवाल,
आखिर क्यों...?

वजह...
मेरा बढ़ाता कद है या
झूठे अभिमान की चादर,
या फिर...
तुम्हारे पुराने ख्यालात...!!
उलझ जाता हूँ मैं ,
करूं क्या उपाय, पूछता हूँ खुद से रोज-ब-रोज...!!

शायद मैं ! अब बड़ा हो गया हूँ..
उम्र से, कद से, या फिर अहम से
या फिर...
संकोच के बादल से घिर गए है मन मे...!!

यही सच है...हाँ, यही सच है
शब्द ऐसे ही गूंजते हैं मन मे..
हाँ ,यही सच हैं..?

लेटा जो एक दिन .माँ के गोंद में सर रखकर..
मुड के देखा माँ की आँखों में...
वही दुलार, वही प्यार, वही अपनापन,
देखकर चौक गया मै...

माँ ने दुलारा जो मुझे प्यार से,
बह चले चंद आंसू ,निर्मल आँखों से...
बह चला साथ ही सारा संकोच,सारा अभिमान...
रह गए तो बस.. हिलोरे लेतीं यादें..

पल में भूल गया खुद को...
याद रहा तो बस...
माँ तेरे स्पर्श, छुवन, प्रेणना और आदर्श...
हां !...माँ बस तेरा दुलार, तेरा अपनापन....
बस तेरा अपनापन................. {अधीर}



शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,
इंसान जरुरत से, बंधा हुआ है ।

मेरे ख्वाबो मे ही, आते है बस वो,
पाना उनको, सपना बना हुआ है।

सुनो,पत्थर दिलो की बस्ती है ये,
तु क्यों मोम सा, बना हुआ है ।

खुदगर्ज है लोग, इस दुनिया मे,
कौन किसका, सहारा हुआ है ।

कहने को तो बस, अपने ही है वो,
दिलासा शब्दो का, बना हुआ है ।

लोहा होता तो, पिघलता शायद,
इंसान पत्थर का, बना हुआ है।

जीतने का ख्वाब, देखा नही कभी,
हारने का, बहाना एक बना हुआ है ।

नही होता अब, यकिन किसी पर ,
इंसान तो जैसे, हवा बना हुआ है।

लगाके गले, वो परायो को शायद,
अंजान अपनो से ही, बना हुआ है।

छोङो मेरे दर्दे-ए-दिल की फिक्र तुम,
ठोकर खाकर "अधीर" संभला हुआ है । { अधीर }

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,
खोना पङता है बहुत कुछ, मानता हुँ मै।

दोस्ती,प्यार,ममता,स्नेह नाम है कई,
इनके बीच का फ़र्क, पहचानता हुँ मै।

समझता नही,कोई समझना चाहता नही,
चाहो अगर, तो समझाना, चाहता हुँ मै।

हर रिश्तो की होती है, अपनी अहमियत,
हर रिश्तो मे खुदको ढालना,जानता हुँ मै।

कुछ पाकर ही रिश्ते, नही निभाये जाते है,
कुछ खोकर भी निभाना, जानता हुँ मै।

रिश्ते किसी गैर से हो, या अपनो से मेरे,
दुख - दर्द उनके बाँटना, जानता हुँ मै। { अधीर }

रविवार, 3 मार्च 2013

दिल कैसे ना मचलेगा.....

चांदनी रात हो, हमसफर का साथ हो,
दिल कैसे ना मचलेगा..... तुम कहो।

सांसो मे खुशबु, हो मौसम बेइमान हो,
दिल कैसे ना मचलेगा ......तुम कहो।

ऑखो में उंमाद हो, सावन की फुहार हो,
दिल कैसे ना मचलेगा........ तुम कहो।

हाथो मे हाथ हो, इंकार ना इकरार हो,
दिल कैसे ना मचलेगा ......तुम कहो।

चाहतो का आलम हो,मदमस्त शाम हो,
दिल कैसे ना मचलेगा........ तुम कहो।

लरजते होठं हो, सासो की गर्माहट हो,
दिल कैसे ना मचलेगा..... तुम कहो। { अधीर }

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

मुझ मे मेरा ही वजूद था वो,

मुझ मे मेरा ही वजूद था वो,
मेरा मुझसे ही अब, जुदा हो गया कोई।

दिल लगाने की ख़ता की थी,
आज चॉद भी निकला, तो डर गया कोई।

हमराही भी युँ बदला उसने,
पुराना लिबास अब
, जैसे छोङ गया कोई।

वो ऐसे दुर चला गया मुझसे,
अपने ही घर से, जैसे निकल गया कोई।

जिन्दगी की किताब था वो,
हर्फ नही खाली लकीरें ही,छोङ गया कोई। {अधीर }

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

तेरी यादों की महक ..

तेरी ही यादों मे , खोये रहता हुँ मै ,
मेरी चाहतो से ,क्यो बेपरवाह हो तुम।

बहाने ढुंढ़ता हुँ ,तुम्हे याद करने के
कैसे समझाऊँ,मेरी जिन्दगी हो तुम।

मेरी चाहत की, नाकामी का क्या कहुँ,
कबुल ना हुयी अब तक,वो दुआ हो तुम।

हर सांस मे बस, तेरी यादों की महक है,
इस तरसते दिल का, अरमान हो तुम।

कुछ और ख्वाब ही, नही है जिन्दगी मे,
दिल का बस, आखिरी अरमान हो तुम। { अधीर }