
फिर से करूँ तुमसे बातें तमाम..
बेहिचक नादानी भरी, मन की जजबातें
जैसे करता था बचपन मे..अठखेली
क्यों रोक लेता है मेरा मन ,
क्यों रुठ जाते हैं बोल,
कपकंपा जातें हैं होंठ,
मन करता है बार-बार सवाल,
आखिर क्यों...?
वजह...
मेरा बढ़ाता कद है या
झूठे अभिमान की चादर,
या फिर...
तुम्हारे पुराने ख्यालात...!!
उलझ जाता हूँ मैं ,
करूं क्या उपाय, पूछता हूँ खुद से रोज-ब-रोज...!!
शायद मैं ! अब बड़ा हो गया हूँ..
उम्र से, कद से, या फिर अहम से
या फिर...
संकोच के बादल से घिर गए है मन मे...!!
यही सच है...हाँ, यही सच है
शब्द ऐसे ही गूंजते हैं मन मे..
हाँ ,यही सच हैं..?
लेटा जो एक दिन .माँ के गोंद में सर रखकर..
मुड के देखा माँ की आँखों में...
वही दुलार, वही प्यार, वही अपनापन,
देखकर चौक गया मै...
माँ ने दुलारा जो मुझे प्यार से,
बह चले चंद आंसू ,निर्मल आँखों से...
बह चला साथ ही सारा संकोच,सारा अभिमान...
रह गए तो बस.. हिलोरे लेतीं यादें..
पल में भूल गया खुद को...
याद रहा तो बस...
माँ तेरे स्पर्श, छुवन, प्रेणना और आदर्श...
हां !...माँ बस तेरा दुलार, तेरा अपनापन....
बस तेरा अपनापन................. {अधीर}
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (12-05-2013) के चर्चा मंच 1242 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएं'माँ ' के लिये बच्चा कभी बड़ा नहीं होता 1
जवाब देंहटाएंma ke aanchal tale saare gam door ho jaate hain ....
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता दिल को छू गया , मातृ दिवस की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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माँ सामने आ जाती है तो ऐसा अक्सर होता है ... भोल जाता है नम सब कुछ बह जाता है ...
जवाब देंहटाएंमाँ ऐसी हो होती है ..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ. उस गोद से ज्यादा चैन कहीं नहीं इस दुनिया में.
जवाब देंहटाएंबस तेरा अपनापन........माँ के साथ यह हमेशा होता है
जवाब देंहटाएं... भावमय करते शब्द
aap sabhi ka bahut bahut Aabhar
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [01.07.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1293 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बेहद सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.
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