
दर्द के दायरे से बाहर, निकल कर तो देखो।
कब तक कैद रहोगे, तन्हाई की जंजीरों मे ,
आजाद फ़िजा मे तुम सांसे, लेकर तो देखो।
ग़म औरो की जिन्दगी मे भी, कम नही है,
इक नजर दुनिया पर भी, डाल कर तो देखो।
इन्सान की हर चाहत पुरी हो, जरुरी तो नही ,
अपनो के दर्द को तुम भी, समझकर तो देखो। [अधीर]
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ. भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल ,,आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
क्या सोच है जनाब | बेहद उम्दा
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