सोमवार, 8 अप्रैल 2013

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,

यु हीं नही बन जाते है, रिश्ते किसी से,
खोना पङता है बहुत कुछ, मानता हुँ मै।

दोस्ती,प्यार,ममता,स्नेह नाम है कई,
इनके बीच का फ़र्क, पहचानता हुँ मै।

समझता नही,कोई समझना चाहता नही,
चाहो अगर, तो समझाना, चाहता हुँ मै।

हर रिश्तो की होती है, अपनी अहमियत,
हर रिश्तो मे खुदको ढालना,जानता हुँ मै।

कुछ पाकर ही रिश्ते, नही निभाये जाते है,
कुछ खोकर भी निभाना, जानता हुँ मै।

रिश्ते किसी गैर से हो, या अपनो से मेरे,
दुख - दर्द उनके बाँटना, जानता हुँ मै। { अधीर }

17 टिप्‍पणियां:



  1. जीवन की गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  2. बहुत कुछ खोकर ही रिश्तों का मर्म समझ आता है ..
    बहुत सुन्दर लिखा आपने ..

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  3. बहुत ही गहन अनुभूति,बेहतरीन प्रस्तुति.

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  4. रिश्‍तों को सहेजते हर शब्‍द को देखा ... हर पंक्ति में ... पाया भाव इनका
    आभार

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  5. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - भारतीय रेल के गौरवमयी १६० वर्ष पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  6. sundar prastuti.........

    kindly visit and follow which gives me a pleasure...
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