चाहता हुँ मै भी उसे पाना !
और बढा देता हुँ दो कदम उसे पाने की चाह मे !
सहसा....
ठिठक जाता हुँ मै !
याद आने लगते है,
मेरे फर्ज , मेरी मर्यादा !
होने लगता हुँ हकिकत से ऱुबरु,
दिल और दिमाग की इसी जंग मे !
आखिरकार हार जाता है दिल......,
और जीत जाता है दिमाग !
लौटा देता हुँ कदमो को मायुसी के साथ ,
उससे दुर , बहुत दुर
यही सोचकर !
मिलेंगें नही शायद इस जनम ,
मिलेंगें शायद अगले जनम !
शायद अगले जनम ! ....{ अधीर }...
दिल और दिमाग की इसी जंग मे !
उत्तर देंहटाएंआखिरकार हार जाता है दिल......,
और जीत जाता है दिमाग
दिल भले हारा लगता हो लेकिन इंसान बड़ा बना जाता है !!
har insaan ko is jang se gujarna padta hai...beautiful
उत्तर देंहटाएं@Vibha di....sarahna ke sath aap agar kamiya batayegi to aur achha lagega ....Abhar apka
उत्तर देंहटाएं@Panchhi ji ....magar iss jung ko ladna akele hi padta hai ....Sadar
उत्तर देंहटाएंदिल और दिमाग की जंग में अगर दिल की जीत होती भी है तो वो सामाजिक प्रष्ठभूमि पर पिछड़ जाता है - प्रशंसनीय प्रस्तुति
उत्तर देंहटाएंBahut bahut Aabhar apka...Rakesh ji
हटाएंहोने लगता हुँ हकिकत से ऱुबरु,
उत्तर देंहटाएंदिल और दिमाग की इसी जंग मे
... होना ही पड़ता है अक़्सर
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... उत्कृष्ट लेखन
आभार
Bahut Bahut Aabhar apka .....Sada, sis
उत्तर देंहटाएंमिलेंगें नही शायद इस जनम ,
उत्तर देंहटाएंमिलेंगें शायद अगले जनम !
Meri Achhi yashoda di.....Dhanyawad..
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