सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

मुझ मे मेरा ही वजूद था वो,

मुझ मे मेरा ही वजूद था वो,
मेरा मुझसे ही अब, जुदा हो गया कोई।

दिल लगाने की ख़ता की थी,
आज चॉद भी निकला, तो डर गया कोई।

हमराही भी युँ बदला उसने,
पुराना लिबास अब
, जैसे छोङ गया कोई।

वो ऐसे दुर चला गया मुझसे,
अपने ही घर से, जैसे निकल गया कोई।

जिन्दगी की किताब था वो,
हर्फ नही खाली लकीरें ही,छोङ गया कोई। {अधीर }

24 टिप्‍पणियां:

  1. वो ऐसे दुर चला गया मुझसे,
    अपने ही घर से, जैसे निकल गया कोई।

    जिन्दगी की किताब था वो,
    हर्फ नही खाली लकीरें ही,छोङ गया कोई।
    वाह ... बेहतरीन
    बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने
    आभार

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण,आभार है आपका.

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  3. मेरा मुझसे ही अब, जुदा हो गया कोई ...
    ----------------------------------------
    बढ़िया अधीर साहब ....

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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  5. जिन्दगी की किताब था वो,
    हर्फ नही खाली लकीरें ही,छोङ गया कोई।

    बहुत खूब,,,,, लाजवाब, सुन्दर !

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  6. खूबसूरत गजल ...

    चाँद से भी डर लगता है
    जब कोई अंधेरे में रहने लगता है ।

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण,आभार है आपका

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है


    ये कैसी मोहब्बत है

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