शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,

यहाँ कब कौन, किसका हुआ है ,
इंसान जरुरत से, बंधा हुआ है ।

मेरे ख्वाबो मे ही, आते है बस वो,
पाना उनको, सपना बना हुआ है।

सुनो,पत्थर दिलो की बस्ती है ये,
तु क्यों मोम सा, बना हुआ है ।

खुदगर्ज है लोग, इस दुनिया मे,
कौन किसका, सहारा हुआ है ।

कहने को तो बस, अपने ही है वो,
दिलासा शब्दो का, बना हुआ है ।

लोहा होता तो, पिघलता शायद,
इंसान पत्थर का, बना हुआ है।

जीतने का ख्वाब, देखा नही कभी,
हारने का, बहाना एक बना हुआ है ।

नही होता अब, यकिन किसी पर ,
इंसान तो जैसे, हवा बना हुआ है।

लगाके गले, वो परायो को शायद,
अंजान अपनो से ही, बना हुआ है।

छोङो मेरे दर्दे-ए-दिल की फिक्र तुम,
ठोकर खाकर "अधीर" संभला हुआ है । { अधीर }

21 टिप्‍पणियां:

  1. लोहा होता तो, पिघलता शायद,
    इंसान पत्थर का, बना हुआ है।
    वाह...बेहतरीन अभिव्यक्ति... शुभकामनायें

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  2. लोहा होता तो, पिघलता शायद,
    इंसान पत्थर का, बना हुआ है।

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर गजल ,,,
    RECENT POST : प्यार में दर्द है,

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सार्थक गहन अनुभूति की रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

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  4. लगाके गले, वो परायो को शायद,
    अंजान अपनो से ही, बना हुआ है।

    शानदार शेर कहा है आपने.

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  5. जीतने का ख्वाब, देखा नही कभी,
    हारने का, बहाना एक बना हुआ है..
    -----------
    बहुत सुन्दर लिखा आपने ..

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  6. नही होता अब, यकिन किसी पर ,
    इंसान तो जैसे, हवा बना हुआ है।
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .

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