शनिवार, 22 दिसंबर 2012

बेऱूखी ......

ये चंद पंक्तियां सालो पहले लिखी थी मैने...

जीवन गमो का पहाङ बनता चला गया,
यादो का कफन भी सिमटता चला गया।

फुलो को पाने की चाह मे,
कांटो मे ऊलझता चला गया।      जीवन....

देखी जो बेऱूखी उनकी इस कदर,
गमो से प्यार करता चला गया।   जीवन..

छुपा रखा था जो ददॆ सीने मे,
नासुर बनता चला गया।          जीवन....

अपनो को होता देखकर बेगाना,
हर इक से रिश्ता तोङता चला गया।    जीवन....
[ अधीर ]

14 टिप्‍पणियां:

  1. देखी जो बेऱूखी उनकी इस कदर,
    गमो से प्यार करता चला गया।

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  2. जीवन गमो का पहाङ बनता चला गया,
    यादो का कफन भी सिमटता चला गया।
    बहुत खूब

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  3. जीवन का एक आधार ये भी .....यूँ ही लिखते रहें


    ब्लॉग जगत में स्वागत है आपका :)

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  4. अपनो को होता देखकर बेगाना,
    हर इक से रिश्ता तोङता चला गया।
    बहुत खूब !!

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  5. अपनो को होता देखकर बेगाना,
    हर इक से रिश्ता तोङता चला गया। जीवन....

    ......बहुत कुछ कह जाती हैं ..
    जैसे आप की ये रचना !

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